मंगलवार, 4 मई 2010

प्रतिभा जौहरी का कहानी संग्रह --- "मुखौटे"


सुप्रसिद्ध कथा-लेखिका प्रतिभा जौहरी का नया कहानी संग्रह मुखौटे अपने छोटे से फलक में विस्तृत संसार समेटे हैं। संग्रह की बारह कहानियों की बुनावट में सरलता की अद्भुत बानगी दिखायी देती है। शहरी जीवन के पात्रों को केन्द्र में रख कर कहानियों को विविधता प्रदान की गयी है। प्रतिभा जी की कहानियाँ सरलता से प्रवाहपूर्ण रेखांकन कर जीवन-जगत के तमाम मुखौटों को प्रदर्शित करती हुईं उनके पीछे छिपी सच्चाई को उजागर करतीं हैं।पूर्ण समन्वित
‘मुखौटे’ कहानी वर्तमान समाज की वास्तविकता को सुन्दरता से बयान करती है। हकीकत को जानने समझने के बाद भी कुछ न कर पाने की विवता कहानी के पात्र दिने को क्रान्तिकारी कदम उठाने को विव करती है। राजनीति, मीडिया के मिले-जुले घालमेल के मध्य दिने का रद्दी की टोकरी में से टेप को निकालना व्यवस्था परिवर्तन का संकेत करता है।

लेखिका के जीवन का एक बड़ा हिस्सा समुद्री यात्राओं, जहाजों की दुनिया में गुजरा है। कहानियाँ शांत सागर से उठा तूफान’ तथा ‘चंद कागज के टुकड़े’ सागर जीवन की सच्चाई से अवगत कराती हैं। सागर की अथाह जलराशि के मध्य अनुकूल मौसम, स्वच्छ नीला आसमान कब संकट के बादलों को ला खड़ा कर दे; कैसे एक निर्णय जीवन और मृत्यु को तय कर दे, इसे इन कहानियों के द्वारा आसानी से समझा जा सकता है। एक छोटी सी गलती किस प्रकार समूचे जीवन के दर्शन को प्रभावित कर देती है यह सत्यता अर्जुन ने अपने साथी को खोकर ही ज्ञात होती है।

छोटे भाई द्वारा लाई चूड़ियों को लेते समय सलमा के चेहरे पर जो चमक थी वह उसकी नन्हीं, कोमल सी उँगलियों में घाव देखकर मिट जाती है। पहले से झुलसी उँगलियाँ, उनमें फिर से आग की तपन, चेहरे का दर्द महसूस करने से सलमा को चूड़ियों की खनक में दर्द भरी कराह सुनायी देती है। बाल मजदूरी के दर्द को उभारती कहानी ‘झुलसी पंखुड़ियाँ’ दे के दुर्भाग्य को दर्शाती है जहाँ गरीबी की मार से नौनिहालों को नारकीय जीवन व्यतीत करना पड़ रहा है और परिवार, समाज, सरकार सभी अनजानी सी खामोशी ओढ़े हैं।

बाल मजदूरी का एक विकृत स्वरूप हमें अपने ही घरों में देखने को मिलता है। परायेपन की ग्रन्थि के वषीभूत बच्चों की भोली दुनिया, मासूम मुस्कान, पावन सपनों को अपने पैरों तले किस प्रकार से रौंद देते हैं, इसका संवेदनशील चित्रण ‘अनजाना रिश्ता कहानी में लेखिका ने किया है। ‘‘आप आराम से नही बैठ पायेंगे तो मुझे डाटेंगे’’ का डरा-सहमा सा भाव पाठकों की आँखों को बच्ची बसंती के दुःख से गीला करता है तो हेमंत द्वारा उसको अपनाने की पहल पर ख़ुशी के आँसू बहते हैं।

मध्यमवर्गीय परिवार की छोटी-छोटी आवष्यकताओं पर त्रासदियों का साया इस प्रकार से पड़ा होता है कि वह चाह कर भी सामाजिक, पारिवारिक सम्बन्धों का निर्वहन प्रसन्नतापूर्वक नहीं कर पाता है। ‘मेवालाल की रज़ाई’ में एक-एक पैसे की जुगाड़ बैठाते आदमी की कड़वी सच्चाई है तो किसी न किसी प्रकार दूसरों की जेब पर डाका डालते लोगों की हकीकत है। अपनी ही रजाई को बापस लेने के लिए दो सौ रुपये देने की अक्षमता के कारण मेवालाल अंत में रजाई छोड़ कर चला जाता है।

संग्रह की अन्य कहानियाँ प्रतिभा जी की समकालीन यथार्थ पर गहरी पकड़, मनोवैज्ञानिक समझ को प्रदर्शित हैं। इसी कारण वे परिवेश के प्रति सजगता एवं पठनीयता का प्रवाह दिखाती हैं।

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पुस्तक : मुखौटे (कहानी संग्रह)
लेखिका : प्रतिभा जौहरी
प्रकाशक : समय प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य : रु0 150=00
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