नई सहस्त्राब्दी में-मानवाधिकार के विविध सन्दर्भ
(संपादक-डा0वीरेन्द्र सिंह यादव)
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(संपादक-डा0वीरेन्द्र सिंह यादव)
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मनुष्य सर्वोष्कृष्ट प्राणी है। मनुष्यता उसके जीवन का आध्यात्मिक एवं लौकिक अलंकृण है। प्रत्येक मनुष्य का मनुष्य के साथ सभाभाव मनुष्यता की मांग है। अतः जाति, लिंग, धर्म, सम्प्रदाय या वर्ग से परे सभी को सामाजिक-आर्थिक-राजनीतिक दृष्टिकोण से सम्मानपूर्वक जीवन जीने का पूर्ण अधिकार ही मानवाधिकार है। इक्कीसवीं सदी उत्तर आधुनिक मानव की सदी है, आज का मानव तमाम वर्जनाओ, बन्धनों को तोड़ आगे बढ़ने को तत्पर है, अतः ’सब के लिए सब’, जियो और जीने दो के भाव के साथ मनुष्य अपने अधिकार प्राप्ति हेतु संचेतित हो प्रखर व मुखर हो रहा है। मनुष्य की बौद्धिकता व मानवीय विचारधारा के प्रतिफल स्वरूप ही 10 दिसम्बर 1948 को संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा ’मानवाधिकार आयोग’ की सार्वभौमिक घोषणा की गई। वैश्वीकरण के इस युग में ’मानवाधिकार आयोग’ की भूमिका के वैज्ञानिक मूल्यांकन हेतु डा0वीरेन्द्र सिंह यादव के द्वारा नई सहस्त्राब्दी में- मानवाधिकार के विविध संदर्भ’ पुस्तक का प्रकाशन एक सराहनीय प्रयास है।
नई सहस्त्राब्दी के परिवर्तित परिवेश में मानवाधिकार के वैश्विक प्रभाव, उसके स्वरूप उद्देश्य, लक्ष्यों व परिणामों को साहित्यकार वीरेन्द्र सिंह यादव ने विभिन्न मनीषियों, बुद्धिजीवियों, वैज्ञानिकों के सहयोग से मानवाधिकार का सूक्ष्म वैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत करने का सार्थक प्रयास किया है। लगभग 33 शोध पत्रों के माध्यम से लेखक ने मानवाधिकार के प्रत्येक पक्ष को अत्यन्त तत्थपरक दृष्टिकोण से प्रस्तुत कर वैज्ञानिक ज्ञान का अप्रितम उदाहरण प्रस्तुत किया है। वैश्वीकरण को मददेनजर रखते हुए समग्र विश्व में मानवाधिकार की विवेचना के साथ-साथ भारत में इसकी उपादेयता को महसूस करते हुए भारतीय संदर्भ में भी वैज्ञानिकों ने इसका विश्लेषणात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। डा0 अजय सिंह का शोध पत्र मानवाधिकार एक अवधारणात्मक विश्लेषण मानवाधिकार की तथ्यपरक व्याख्या प्रस्तुत करता है।’ ’मानवाधिकार की समस्याएं और संरक्षण, भारतीय परिदृश्य में भारत में मानवाधिकार आयोग की स्थिति की सार्थक विवेचना प्रस्तुत करता है। इसी प्रकार महिलाओं के सबलीकरण सशक्तीकरण एवं उनकी विभिन्न समस्याओं के निदान में मानवाधिकार की भूमिका को अत्यन्त महत्वपूर्ण समाज वैज्ञानिक संदर्भ में प्रस्तुत कया गया है।
यह सर्वविदित है कि नई सहस्त्राब्दी में मानवाधिकार आयोग की अग्रणी भूमिका ने मानवीय विकास की सार्थक जमीन तलाश की है, आज भारत में ही नही समग्र विश्व में जाति, वर्ग, नस्लीय भेद, लौंगिक विभेद की खाई को पाटने में मानवाधिकार अपनी महती भूमिका का निर्वहन करता आया है। इसी सब मुद्दो को अद्वितीय साहित्यकार डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव ने अति प्रासंगिकता के साथ सूक्ष्म दृष्टि से पुस्तक का सम्पादन किया है। वैज्ञानिक एवं तर्क संगत विचाराधारा इस पुस्तक की सर्वोत्तम उपलब्धि है जो समाज विज्ञान के प्रत्येक शोधार्थी, विधार्थी के लिए अति उपयोगी सिद्ध होगी।
डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव वर्तमान युवा साहित्यकार के रूप में अनेक पुरस्कारों व अंलकृणों के साथ अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हैं। डा0 यादव की विशेषता यह है कि मात्र एक साहित्यकार के रूप में नहीं अपितु विशिष्ट वैज्ञानिक परख के साथ वे समाज के प्रत्येक क्षेत्र से संबंधित पुस्तकों सम्पादन कर अपनी विलक्षण प्रतिभा का प्रमाण प्रस्तुत कर चुके हैं। दुआओं के साथ आशा है कि वे साहित्य एवं समाज विज्ञान के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप बनाये रखने में सदैव अग्रणी रहेंगें।
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समीक्षक - डा0 सबीहा रहमानी
असिसटेंट प्रोफेसर-समाजशास्त्र
रा0म0स्ना0महा0,बांदा
एवम्
अवैतनिक प्रबंधक
चिराग फाउण्डेशन(चैरिटबल संस्था) बांदा
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पुस्तक - नई सहस्त्राब्दी में मानवाधिकार के विविध सन्दर्भ
सम्पादक - डा0 वीरेन्द्र सिंह यादव
प्रकाशक - ओमेगा पब्लिकेशन्स 4373/4 बी., जी. 4,
जे. एम. डी. हाउस, मुरारी लाल स्ट्रीट,
अंसारी रोड, दरियागंज, नई दिल्ली
मूल्य - रु0 795.00
पेज - 24 + 304 = 328
ISBN - 978-81-8455-257-7