विटामिन ज़िन्दगी किसी एक व्यक्ति की कहानी
मात्र नहीं वरन सन 1976 में जन्मे एक असामान्य बच्चे के
असाधारण होकर राष्ट्रीय रोल मॉडल बनने की यात्रा है. इस यात्रा का चयन वह बालक अपने
लिए स्वेच्छा से नहीं करता है बल्कि उसकी प्रकृति माँ स्वयं आकर उसका चयन करती है.
इस चयन के लिए एक पल को वह पूछना ही चाहता है कि सिर्फ उसका ही चयन क्यों मगर बचपन
से आत्मविश्वास के और सकारात्मक सोच के धनी उस बालक ने तत्काल विचार किया कि उसकी
प्रकृति माँ द्वारा किसी अन्य को बचाने की दृष्टि से उसका चयन इसके लिए किया है. महज
चार वर्ष की अवस्था में दौड़ते, कूदते, फुर्तीले बालक को बुखार के साथ चुपचाप चले
आये पोलियो ने खड़ा न होने देने की ठान ली थी तो उस बालक ने भी अपनी उड़ान को
निरंतरता देने की ठान रखी थी. वह बालक ललित आत्मविश्वास और सकारात्मक सोच के
साथ हर बार, हर ठोकर पर और जीवट बनता रहा, हर दर्द पर और सक्षम होता रहा.
दिल्ली
की गलियों में आते-जाते गिरने वाला बालक, स्कूल की खड़ी सीढ़ियाँ जीवंतता के साथ
अपने क़दमों से नापने वाला बालक, देरी से आने पर स्वाभिमान के साथ अपनी शारीरिक
स्थिति को दरकिनार रखते हुए शिक्षक को सजा देने के लिए कहने वाला बालक एक दिन
रोल मॉडल बनकर सबके सामने आएगा ये किसी ने नहीं सोचा था. उस बालक ने भी नहीं मगर
उसके दिल में यह ज़ज्बा अवश्य था कि उसे वह सब करके दिखाना है जो उसके साथ के बच्चे
कर रहे हैं या कहें कि उससे अधिक करना है. उनसे बहुत आगे जाना है, बहुत ऊँचाई पर
उड़ना है. ऐसे में चीन की दीवार पर जाकर खड़े होना, स्टोन बॉय से मिलकर अपनी
भावनात्मक यादों को ताजा करना, संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ मिलकर कार्य करने की
वैश्विक क्षमता का विकास करना, विदेश जाकर उच्च शिक्षा प्राप्त करके अपनी
शारीरिकता पर बौद्धिकता की विजय को साबित करना आदि उस बालक के असाधारण बनने की
राह के विभिन्न पड़ाव बनते चले गए.
इन
पड़ावों की सफलतम पहुँच के दौरान वह बालक बचपन से कष्ट का, दर्द का, पीड़ा का
प्रकृति माँ द्वारा ओढ़ाया गया आँचल ओढ़े रहा. एक-दो दिनों की नहीं महीनों, सालों
की, पल-पल की कष्टकारी प्रक्रिया संभवतः किसी यातना से कम नहीं. बावजूद इसके उस
बालक में, बालक से युवा बनते ललित में आगे ही आगे बढ़ते जाने की ललक पल भर
को कम नहीं हुई. विटामिन ज़िन्दगी को कथा, उपन्यास आदि के रूप में
पढ़ने की मंशा लेकर शायद कुछ हाथ नहीं लगे मगर जब इसके द्वारा ललित से मिलने
की कोशिश की जाएगी, खुद को भीड़ से अलग रखकर देखने की चाह पैदा की जाएगी तो एहसास
जागेगा कि पृष्ठ दर पृष्ठ जिस पीड़ा का चित्रण एक-एक शब्द करने में लगे हैं, ललित
ने उस पल-पल पीड़ा को अपने साथ-साथ चलते देखा है, पलते देखा है, बढ़ते देखा है. शारीरिक
कष्ट की इस पीड़ा से ज्यादा कष्टकारी पीड़ा अवश्य ही वह रही होगी जो कि समाज की
मनोदशा से, उसकी प्रतिक्रिया से मिलती रही. कदम दर कदम चलती गतिविधि के साथ-साथ
शारीरिक रूप से भिन्न क्षमताओं वाले लोगों के प्रति समाज कितना असंवेदनात्मक
रवैया, मानसिकता अपनाता है इसे सहज देखा-एहसास किया जा सकता है. सच तो यह है कि विटामिन
ज़िन्दगी महज पुस्तक नहीं, एक कृति नहीं, खुद ललित द्वारा लिखे गए
संस्मरण मात्र नहीं हैं वरन ललित के रूप में ललित से मिलने का सफ़र
है. इस सफ़र का आनंद उसी को आएगा जो ललित से मिलने की चाह रखता है.
समीक्षात्मक
रूप से किसी के जीवन को आँकना किसी के लिए भी सहज नहीं होता. खुद हमारे शब्दों में
यह न तो उस पुस्तक की समीक्षा है और न ही ललित की जीवन यात्रा का विश्लेषण,
न उनके साथ-साथ दोस्ताना निभाते दर्द का चित्रण है. यह ललित के दर्द को
समझने का प्रयास मात्र है, समाज की उस मानसिकता के साथ गुजरने का एहसास है, शरीर का
अंग न होकर भी शरीर जैसी बनी उन बैसाखियों के साथ उड़ान भरने की प्रक्रिया मात्र
है. उनके समर्पण कि यह पुस्तक उन्हें समर्पित है जो अलग हैं या भीड़ से अलग होना
चाहते हैं, के साथ हम यह भी जोड़ना चाहते हैं कि यह पुस्तक उन सबके लिए भी एक
विटामिन बने जो महज भीड़ का हिस्सा बने हुए हैं. यह पुस्तक उनके लिए भी असाधारण
महत्त्व रखे जो समाज की बंधी-बंधाई सोच के साथ चलते रहते हैं. आखिर हम सभी को याद
रखना चाहिए कि विटामिन ज़िन्दगी उसी के हिस्से आया है जिसने ज़िन्दगी को जिया है,
बिताया नहीं है. विटामिन ज़िन्दगी से ऊर्जा पाते ललित का जीवन सम्पूर्ण समाज को
जीवन जीने की कला सिखाये, यही कामना है.
समीक्षक
: डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
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कृति
: विटामिन ज़िन्दगी (संस्मरण)
लेखक
: ललित कुमार
प्रकाशक
: हिन्द युग्म, नई दिल्ली एवं एका, चेन्नई
संस्करण
: प्रथम, 2019
ISBN : 9789388689175