रविवार, 25 दिसंबर 2022

शबनम सी सहज भावनाओं का स्वर है तुहिना

बहुत दिनों बाद एक ऐसा काव्य-संग्रह देखने-पढ़ने का अवसर मिला जिसकी न केवल रचनाएँ साहित्यिक हैं बल्कि उसका नाम भी साहित्यिक है. तुहिना, जी हाँ, यही नाम है काव्य-संग्रह का. चलिए, पहला परिचय संग्रह के शीर्षक से ही करवाते हैं आपका. बहुत से लोगों के लिए यह शब्द जाना-पहचाना होगा और बहुत से लोगों के लिए इस शब्द, तुहिना से पहली बार परिचय हुआ होगा. ओस की बूँद का अर्थ स्वयं में सहेजे इस शब्द के संग्रह में कुछ इसी तरह की रचनाएँ हैं जो ओस की बूँद की तरह अपनी तरफ आकर्षित करती हैं.


इस आकर्षण में चमक उस समय और बढ़ जाती है जबकि जानकारी होती है कि यह काव्य-संग्रह लेखिका का पहला काव्य-संग्रह है. अध्यापन, लेखन से जुड़ी डॉ. ऋचा सिंह राठौर का पहला काव्य-संग्रह, तुहिना उनकी रचनात्मकता के साथ-साथ उनकी भावनात्मकता, संवेदनशीलता को दर्शाता है. जिस तरह से उन्होंने सूक्ष्म बिंदु से लेकर विस्तृत फलक तक अपनी दृष्टि को दौड़कर उसे अपनी कलम के सहारे शब्दों से सजाया है, वह सराहनीय है.


उनकी रचनाओं में एक तरफ उनके अपने जीवन की गति सी दिखाई देती है तो उसी के साथ वे देश भावना के साथ भी दिखाई देती हैं. प्रकृति के अंगों-उपांगों को जहाँ वे अपनी कलम से सजाती हैं तो देश के वीरों-वीरांगनाओं के प्रति भी सम्मान भाव प्रकट करती हैं. ऋचा सिंह की कविताएँ ऊर्जा का संचार करती सी मालूम होती हैं. उनकी शब्द संरचना निराशा का नहीं वरन आशा का संचार करती हैं. इसका प्रमाण उनकी रचनाएँ स्वतः देती हैं. इसे महज इस रूप में समझा जा सकता है कि ज़िन्दगी, एक लम्हे की ज़िन्दगी, ज़िन्दगी मुझे छोड़ आगे निकल गई, बूँद सी ज़िन्दगी, ज़िन्दगी के फैसले, जी भर जीने दो ज़िन्दगी आदि कविताओं में वे ज़िन्दगी के विविध रूप-रंग को दर्शाती हैं. इस ऊर्जा के कारण वे कहती हैं कि


ज़िन्दगी जाम तो नहीं

जो घूँट-घूँट पी जाये,

मिली है बड़ी शिद्दतों से

क्यों न जी भर के जी जाये.


उनकी कलम ज़िन्दगी को लेकर बस इतनी सी बात न कह कर आगे उसके खेल के बारे में भी अपनी बात रखती है.


ज़िन्दगी भी अजब

खेल दिखाती है

सोचो कुछ और

कुछ और करवाती है.


यह वाकई एक ऐसा सत्य है जिससे प्रत्येक व्यक्ति दो-चार होता है. हर एक व्यक्ति अपने जीवन में बहुत कुछ सोचता है मगर उसे क्या करना पड़ जाये, इसके बारे में कुछ नहीं कहा जा सकता. जीवन के अनिश्चय के बीच वे खुशियों को अपने घर बस जाने का आमंत्रण देती हैं.


हौसला, विश्वास, इरादा, भाव-बोध आदि कविताओं के द्वारा ऋचा सिंह दिल में छिपे गुबार को/अश्क बन कर बह जाने दो की तरह से बहुत सारे विचारों को तुहिना में बहा देती हैं. इसके लिए वे नियति को किसी भी तरह दोषी नहीं मानती हैं. वे बड़े ही सकारात्मक भाव से स्वीकारती हैं कि


क्या ख़ुशी क्या ग़म

आँसू थे किस्मत में

तो खुशियों में भी

आँखों से गिरे.


इसी सकारात्मकता के कारण वे जहाँ जीवन के विविध रंगों को अपनी कलम से सजाती हैं तो वे काली कराल सी, अंतस के राम, गांडीव उठा अर्जुन, लहू राणा का, दुर्गा स्वरूपा लक्ष्मी आदि के द्वारा ऐतिहासिक प्रतीकों को निखारती हुईं आज की बात करती हैं. वे अपनी इन कविताओं के सहारे लोगों को जागने का सन्देश देती हैं.


हे राम! अपने जीवन का

लक्ष्य साधो

नाराच के प्रहार से

पापियों को

मर्यादा में बांधो,

हे अंतस के राम!

तुम जागो.


ज़िन्दगी के, प्रकृति के, देश के बारे में कलम चलाती ऋचा सिंह बहुत ही सहज भाव से जीवन के कोमलकांत पक्ष पर भी लेखनी का प्रवाह दिखाती हैं. उन्होंने जिस सहजता के साथ ज़िन्दगी की कठोरता को चित्रित किया है, उसी सहजता के साथ वे प्यार, ख़ुशी जैसी कोमल भावना को चित्रित करती हैं. ऐ ख़ुशी, तू आना मेरा घर/बस जाना तू यहाँ आकर जैसी रचना स्वतः ही उनकी कोमल भावनाओं का उदघाटन करती है. वे ज़िन्दगी के कठोर और कोमल भावनाओं को समझती हैं.


जब लब होते खामोश

आँखें कहती हैं सारी कहानी

शब्दों से जो न कहा गया

वो मौन बहता है बनके

तेरी आँखों का पानी.


इसी तरह से


जज्बात-ए-दिल को

दफ्न किये रहे बरसों,

ख़ामोशी से लबों को

सिये रहे बरसों.


के द्वारा उनकी कलम दिल की मजबूरी को दर्शाती है. यह सूक्ष्म भावना उसी रचनाकार के दिल से उभर सकती है जिसने गंभीरता के साथ समाज के सभी पहलुओं पर अपनी दृष्टि डाली हो.


अपने पहले ही काव्य-संग्रह के द्वारा डॉ. ऋचा सिंह राठौर ने साहित्य जगत में एक आशा की किरण जगाई है. निश्चित ही निकट भविष्य में उनके द्वारा और भी महत्त्वपूर्ण कृतियों से साहित्य संसार जगमगाएगा.  


एक बूँद बन मोती की

धरती को

अम्बर की कहानी

सुनाती तुहिना.


निश्चित ही तुहिना ऐसी अनेक कहानियाँ सुनाती है. बस इसे दिल से, संवेदना से सुनने की आवश्यकता है.   

 

समीक्षक : डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

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कृति : तुहिना (काव्य-संग्रह)

लेखिका : डॉ० ऋचा सिंह राठौर

प्रकाशक : श्वेतवर्णा प्रकाशननई दिल्ली

संस्करण : प्रथम, 2022

ISBN : 978-93-95432-37-5