बुधवार, 13 नवंबर 2019

रमकल्लो के जीवन की सरगम है उसके पत्रों में


तकनीक से भरे दौर में चिट्ठी-पत्री की बात करना आश्चर्यजनक लग सकता है. इससे ज्यादा आश्चर्य की बात तो ये है कि कलम के द्वारा ग्रामीण संवेदनाओं को सहजता से उकेरने वाले लखनलाल पाल ने लगभग विलुप्त हो चुकी चिट्ठी-पत्री को उपन्यास का आधार बना दिया है. रमकल्लो की पाती के द्वारा उन्होंने एक अभिनव प्रयोग उपन्यास विधा में किया है. इस तरह का कोई प्रयोग उपन्यास में पहले हुआ हो तो इसकी जानकारी नहीं. 

लेखक द्वारा इससे पहले भी कई कृतियाँ ग्रामीण परिवेश पर आ चुकी हैं. वे स्वयं भी ग्रामीण क्षेत्र से वर्तमान तक गहराई से जुड़े हुए हैं, इसी कारण से उनके द्वारा ग्रामीण जीवन की अभिव्यक्ति अत्यंत सहज रूप से हो जाती है. ऐसा लगता है जैसे ग्रामीण जीवन उनकी कलम से स्वतः ही प्रवाहित होने लगता है, कागज़ पर सजने-संवरने लगता है. समीक्ष्य उपन्यास में लेखक ने एक ग्रामीण महिला के द्वारा लिखे गए पत्रों को आधार बनाते हुए उसकी मनोदशा, उसके संघर्ष, उसकी जिजीविषा, उसके आत्मविश्वास को उकेरा है. यह अपने आपमें अद्भुत कार्य है कि किसी महिला द्वारा अपने पति को लिखे गए पत्रों के आधार पर ग्रामीण जीवन का एक सार्थक चित्र उपन्यास के रूप में पाठकों के सामने रख दिया जाये.

जैसा कि कृति के नाम से ही आभास होता है कि यह एक महिला रमकल्लो के द्वारा लिखे पत्रों की कहानी है. उसका पति गाँव से दूर दिल्ली में मजदूरी करने गया हुआ है. उसकी पत्नी रमकल्लो, जिसने अपनी दृढ इच्छाशक्ति से पढ़ना-लिखना सीखा, अपने पति को नियमित रूप से पत्र लिखती है. उसके पत्रों में उसकी अपनी विवशता, घर, खेतों, जानवरों की देखभाल सम्बन्धी समस्या तो है ही साथ ही गाँव के अन्य समाचारों से भी अपने पति को अवगत कराना है. गाँव में रहकर ही हाईस्कूल की परीक्षा पास कर चुकी रमकल्लो ने अपने पत्रों के द्वारा वर्तमान समाज की, सरकारी मशीनरी की, अव्यवस्था आदि की भी तस्वीर सामने रखी है. नोटबंदी की घटना रही हो या फिर परीक्षाओं में मूल्यांकन के दौरान परीक्षार्थियों की उत्तर पुस्तिका से रुपये निकलने के किस्से, ग्रामीण क्षेत्रों में शौचालय बनवाए जाने सम्बन्धी कार्य, जॉब कार्ड में की जाने वाली अनियमितताएं आदि के अनुभव से सामने आये हैं.

ऐसा नहीं है कि उसके द्वारा सिर्फ अपनी बात की गई है. वह गाँव में खुद को सक्रिय बनाये हुए है. गाँव के अराजक लोगों के खिलाफ भी वह न केवल खड़ी होती है वरन पुलिस में उनकी शिकायत भी करती है. गाँव की महिलाओं को अत्याचार से बचाने में आगे आती है तो गाँव की बेटी के विवाहोपरांत आये संकट को दूर कर उसे उसके पति से भी मिलाती है. यह चित्रण किसी भी ग्रामीण महिला के सशक्त होने की कहानी कहता है. इसी सशक्तता के चलते रमकल्लो प्रधानी के चुनावों में भी उतरती है. इसके पीछे उसका उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं, बालिकाओं के विकास का मार्ग प्रशस्त करना है. रमकल्लो की कहानी का इसे सार भर समझा जाए. असल आनंद तो उसके पत्रों को स्वयं पढ़कर ही उठाना होगा.

बहरहाल, लखनलाल पाल की इस कृति की विशेषता यह रही है कि पत्रों में किसी तरह की बोझिलता नहीं है. एक पत्र के समाप्त होते ही स्वतः दूसरा पत्र पढ़ने की उत्कंठा पैदा होती है. पत्र आपस में जुड़कर एक कथा का, ग्रामीण परिवेश का वातावरण निर्मित करते हैं. पाठक आसानी से इसके साथ अपना तादाम्य स्थापित कर लेता है. अत्यंत सरल, रोचक भाषा में लिखे गए पत्रों में ग्रामीण अंचल (बुन्देली) के शब्द स्वतः ही जन्मते रहते हैं. ऐसा कहीं नहीं लगा है कि उनको जबरन ठूंसने का काम किया गया है. इसके साथ-साथ लेखक ने संवेदना को प्रमुखता देते हुए पत्रों के माध्यम से एक ग्रामीण महिला की, ग्रामीण परिवेश का अंकन दिया है. अनेक स्थल ऐसे बन पड़े हैं जहाँ मार्मिकता स्पष्ट रूप से पाठकों को झकझोर जाती है. रमकल्लो के पत्र पाठकों को हँसाते-हँसाते रुला देने का और आँसू लाने की स्थिति के साथ ही मुस्कराहट भर देने का काम करते हैं.

लखनलाल पाल की यह कृति निश्चित ही पठनीय है. उपन्यास विधा में इस अनुपम प्रयोग के लिए वे साधुवाद के पात्र हैं. इस कृति के द्वारा किसी न किसी रूप में उन्होंने विलुप्त हो जा रही पत्र विधा को भी जीवित करने का कार्य किया है.

समीक्षक : डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
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कृति : रमकल्लो की पाती (उपन्यास)
लेखक : लखनलाल पाल
प्रकाशक : रश्मि प्रकाशन, लखनऊ
संस्करण : प्रथम, 2019
ISBN : 978-93-87773-77-6


2 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 14 नवंबर 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!


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