रविवार, 25 अगस्त 2024

मानवीय संवेदनाओं, भावनाओं का चित्रण

देश की लगभग सभी प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके डॉ. लखन लाल पाल एक ऐसे साहित्यकार हैं जो अपने लेखन से एकसाथ अपनी मातृभाषा को और अपने जन्मस्थान को अलंकृत करते हैं. हाल ही में प्रकाशित उनके दूसरे संग्रह कोरोना, लॉकडाउन और लड़की को पढ़ने का मौका मिला. कहानी संग्रह के शीर्षक ने प्रथम दृष्टया कौतूहल जगाया. ये कौतूहल इसलिए भी जागा क्योंकि विगत दिनों में कोरोना ने जिस तरह से अपने देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी आतंक और रौद्र रूप दिखलाया वह किसी से छिपा नहीं है. कोरोना के महाभयंकर रूप ने न जाने कितनी सच्ची कहानियों को जन्म दिया. इसी कोरोनाकाल से उपजा लॉकडाउन जहाँ नागरिकों की जान की रक्षा करने के लिए लगाया गया था, वहीं इस लॉकडाउन ने बहुत से नागरिकों को शारीरिक, मानसिक, आर्थिक रूप से परेशान भी किया था.

 

सबसे पहले संग्रह के शीर्षक की कहानी कोरोना, लॉकडाउन और लड़की पर ही दृष्टिपात किया गया. इस कहानी में कोरोनाकाल की उस मनोदशा का अत्यंत सूक्ष्मता से चित्रण किया है, लॉकडाउन की वास्तविकता से अनभिज्ञ बहुत से लोग अपने-अपने कार्यस्थल पर ही रुके रहे. बाद में उनका रुकना उस अनजान शहर में फँसने जैसा हो गया. अनजान शहर, लॉकडाउन की स्थिति, कोरोना जैसी महामारी का भय, आपस में मिलने-जुलने की मानसिक और प्रशासनिक मनाही में कैसे कोई अकेला व्यक्ति खुद से, खुद की मानसिकता से, खुद के व्यवहार से सामंजस्य बिठाता होगा, इसे अत्यंत सूक्ष्मता से इस कहानी में उकेरा गया है. यह कहानी एक तरह का अनिश्चित भविष्य का चित्रण करते हुए एक ऐसे भय, एक ऐसी आशंका को दर्शाती है जो पाठकों को रोमांचित करती है. इस कहानी को यदि मनोवैज्ञानिक कहानी के रूप में परिभाषित किया जाये तो किसी तरह की अतिश्योक्ति नहीं होगी.

 

कहानी संग्रह की इस कहानी के अलावा अन्य कहानियों में ग्रामीण अंचल की खुशबू स्वतः तैरती हुई दर्शकों को अपनी ओर आकर्षित करती है. अपने अध्ययन, अध्यापन, साहित्य-लेखन, आजीविका आदि के दौर में उनका संपर्क शहरी परिवेश से भले ही बना रहा हो मगर उनके मूल से ग्रामीण अंचल की कोमलता, सहजता विस्मृत नहीं हो सकी. यही कारण है कि संग्रह की लगभग सभी कहानियों में ग्रामीण जीवन अत्यंत सहजता के साथ दृष्टिगोचर हुआ है.

 

सहज रूप में, बिना किसी लाग-लपेट के कहा जाये तो डॉ. लखन लाल पाल ग्रामीण जीवन को अलंकृत करके परिलक्षित करने वाले साहित्यकार हैं. आज के दौर में उनका ग्रामीण जीवन को उसी रूप में प्रदर्शित करना, जैसा कि वह होता है एक विश्वास जगाता है कि हिन्दी साहित्य से गाँव, ग्रामीण चहल-पहल, वार्तालाप, जीवन-शैली अभी विलुप्त नहीं होने वाली. उनकी कहानियाँ समाज को ही नहीं बल्कि संस्कृति को भी जीवंत करती हैं. निश्चित रूप से लखन लाल पाल का यह कहानी संग्रह नवीन भाव-बिम्बों के साथ-साथ आशान्वित करता है कि निकट भविष्य में ग्रामीण जीवन का पल्लवित-पुष्पित चित्र हिन्दी साहित्य में स्थापित रहेगा.

 

समीक्षक : डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

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कृति : कोरोना, लॉकडाउन और लड़की (कहानी-संग्रह)

लेखिका : डॉ० लखन लाल पाल

प्रकाशक : रश्मि प्रकाशन, लखनऊ 

संस्करण : प्रथम, 2024

ISBN : 978-81-19822-22-5

 


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