बुधवार, 21 जनवरी 2015

3D of LIFE : प्रेम, सहयोग, समर्पण, समझौते की कहानी



इधर युवा पीढ़ी तेजी से लेखन की दिशा में अग्रसर हुई है और इस कड़ी में अपने पहले उपन्यास ‘3D of Life’ के द्वारा एक और युवा नाम पंकज गुप्ता का जुड़ जाता है. अंग्रेजी साहित्य के बहुसंख्यक नवोन्मेषी लेखकों की भांति पंकज भी इंजीनियरिंग क्षेत्र से जुड़े हैं और आई०टी० प्रोफेशनल हैं. हाल के वर्षों में बाज़ार में आये अंग्रेजी उपन्यासों में बहुतायत में ऐसे हैं जो प्रबंधन, इंजीनियरिंग, प्रोद्योगिकी आदि क्षेत्रों से जुड़े लोगों द्वारा लिखे गए हैं, जिनमें मुख्य रूप से उनके इन क्षेत्रों के अनुभवों का संग्रह सा दिखता है. पंकज अपने इस पहले उपन्यास में एक कथा कहने का, उसको प्रवाह देने का प्रयास करते हैं और बहुत हद तक सफल भी होते हैं. उपन्यास में कथा का कालखंड विस्तृत है किन्तु पंकज कथा को अनावश्यक विस्तार देने से बचे हैं. कहानी के मूल में रहे एकमात्र पुरुष पात्र के बचपन से लेकर युवावस्था तक की कहानी को वे सहजता से पाठकों के समक्ष रखते हैं. 

जैसा कि अक्सर देखने में आया है कि किसी भी लेखक द्वारा अपने अतीत, अपने अनुभवों, अपने वातावरण, स्वयं के भोगे-देखे अनुभवों को उसकी कृतियों में स्थान अवश्य ही मिलता है. पंकज भी अपनी पहली कृति में इसका मोह त्याग नहीं सके हैं और कथा फलक का आरम्भ अपने छोटे से कस्बे कालपी, जालौन, उरई आदि की घटनाओं से करते हैं. बचपन की चंद घटनाओं को पाठकों के साथ तारतम्य जोड़ने की दृष्टि से सामने रखकर पंकज मुख्य कथा की और मुड़ जाते हैं. ये उनके लेखन कौशल का ही कमाल कहा जायेगा कि वे इसे बहुत ही सहजता से मोड़ने में सफल रहते हैं. फ्लैशबैक में चल रही उनकी कहानी अपने प्रवाह को अवरुद्ध नहीं होने देती है. उपन्यास ‘3D of Life’ की कहानी को लेखक ने मूल रूप से Love, Support and Sacrifice की आधारभूमि पर विकसित किया है, जिनसे कहानी का मुख्य पात्र समय-समय पर प्रभावित होता रहता है. उपन्यास की कथा के रूप में मुख्य पात्र के बचपन की चंद घटनाएँ, उसकी शिक्षा, स्कूली प्रेमाकर्षण, फिर उसका बिछड़ना, उच्च शिक्षा हेतु अपने छोटे से कस्बे से बाहर जाना और वहाँ उसको वास्तविक प्रेम का एहसास होना आदि वे स्थितियाँ हैं जिनके द्वारा उपन्यास की कथा विकास करती है. कालांतर में प्रेम परवान चढ़ने से पूर्व ही पारिवारिक जिम्मेवारियों का बोझ उस युवक को कैरियर का चयन करने अथवा अपने प्यार को सहयोग करने के अंतर्द्वन्द्व में खड़ा कर देता है. इस बिंदु को उपन्यास का चरम कहा जा सकता है जहाँ आकर पाठक उपन्यास के दोनों पात्रों (युवक-युवती) से अपना जुड़ाव महसूस करता है. जीवन के सफ़र में बहुत छोटी-छोटी घटनाओं से उत्पन्न किन्तु कभी न भुला पाने की टीस के सहारे रची-बुनी गई कथा यद्यपि छोटी, सीधी, सपाट मालूम पड़ती है किन्तु लेखक पंकज ने संवेदनाओं को उकेरने के कोई कसर नहीं छोड़ी है. 

भले ही ये पंकज की पहली कृति हो किन्तु वे पठनीयता को बनाये रखने में नहीं चूके हैं. रोचकता के बिंदु पर आकर उनके द्वारा बचपन में दर्शाई गई झाड़-फूंक की घटना बहुत देर तक पाठकों के अंतर्मन को जगाये रखती है और बार-बार सोचने को विवश करती है कि कब उस घटना का क्लाइमेक्स टूटेगा. उनके मुख्य पात्र को लगातार किसी न किसी अंतर्द्वन्द्व में घिरा देखा गया है और उसके अंतर्द्वन्द्व के साथ पंकज पाठकों को भी जोड़ने में सफल होते हैं. हां अथवा न की स्थिति में कई बार खुद पाठक निर्धारित नहीं कर पाते कि स्थिति क्या बनेगी. किस्सागोई के मामले में पंकज अपने पहले ही उपन्यास में सफल प्रतीत होते हैं. इसके बाद भी चंद बिंदु ऐसे हैं जिनको यदि आलोचक की दृष्टि से देखा जाये तो वहाँ पर हलकी त्रुटि समझ आती है अन्यथा वे भी कथा-प्रवाह में पाठकों की निगाह के सामने से सफलतापूर्वक गुजर जाते हैं. इसके पीछे कथा का धाराप्रवाह होना, कथ्य की कसावट, शिल्प का एकबद्ध होना, संवेदनात्मक होना, प्रेम का चरमोत्कर्ष होने के बाद भी मर्यादा, संयम दिखलाई देना आदि प्रमुख रहा है. 

ऐसे बिन्दुओं में संवादों का लम्बा होना प्रमुखता से कहा जा सकता है. उपन्यास की सम्पूर्ण कथा दो लोगों के मध्य वार्तालाप के परिणामस्वरूप उत्पन्न होती है. इसके बाद भी ये बात खटकती है कि वार्तालाप एक ही व्यक्ति की तरफ से जारी रहता है. लेखक ने दिखाया है कि मुख्य पात्र अपनी सहकर्मी के पति की समस्या के समाधान हेतु आता है किन्तु खुद लेखक भी संवेदनात्मकता में इसी मुख्य पात्र की कथा तक ही खुद को सीमित कर लेता है. ये भी इस कृति की एक कमी समझी जा सकती है. स्कूली शिक्षा के समय उसकी कक्षा में एक लड़की का प्रवेश और उसके बाद की घटनाओं में किसी अन्य सहपाठी का किसी भी प्रकार का चित्रण न दिखाया जाना भी खटकता है. हालाँकि लेखक ने मुख्य पात्र के चंद मित्रों द्वारा ऐसा करना दिखाया है किन्तु स्कूल के, कक्षा के विद्यार्थियों द्वारा किसी भी तरह की गतिविधि को सामने न लाना समझ से परे रहा. इसी तरह बचपन की चंद घटनाओं, जिनका होना, न होना उपन्यास की कथा पर किसी भी तरह का प्रभाव नहीं डालता है, का आना कथा-पाठक के मध्य संवाद सा स्थापित करता है. ऐसा करने में पंकज सफल सिद्ध होते हैं. 

आलोचना की दृष्टि से यदि उक्त चंद बिन्दुओं को नजरंदाज़ कर दिया जाये तो पंकज का पहला उपन्यास निराश नहीं करता है. संवेदनाओं की भावभूमि पर निर्मित उनका कथ्य-संसार प्रेम, सहयोग, परिवार, समझौते, कैरियर आदि को एकबद्ध करता हुआ आगे बढ़ता है. पंकज साहित्य जगत को और भी नई-नई कृतियाँ उपलब्ध करवाएंगे, ऐसी अपेक्षा इस पहले उपन्यास को पढ़ने के बाद की जा सकती है.

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