बुधवार, 16 मई 2018

प्रेम और विरह-वेदना की कसक....


दो खण्डों में विभक्त प्रथम कविता संग्रह की रचनाएँ खंडित नहीं हैं. वे पाठक का तारतम्य अपने साथ-साथ खुद में अभिव्यक्त मनोभावनाओं से करवाती चलती हैं. ये किसी भी साहित्यकार के लिए सुखद अनुभूति होती है जबकि उसकी रचनाएँ उसकी कलम से साकार होने के बाद अपने विचारों को स्वतः आकार देती चलें. डॉ० अनिता सिंह की रचनाएँ कुछ ऐसा ही करती नजर आती हैं. उनकी गुमसुम कोपलें शीर्षक में जितनी गुमसुम नजर आती हैं वास्तव में उतनी गुमसुम नहीं हैं. इनके ऐसा होने के पीछे डॉ० अनिता का वो विश्वासी भाव है जो उन्होंने अपनी रचनाओं में व्यक्त कर रखा है. मुक्त रूप में उनकी गुमसुम कोपलें सफ़र करने को आतुर हैं. सफ़र बचपन से शुरू होकर भले ही दर्शन तक चला जाता हो मगर सभी का आंतिरक भाव बचपने से ओतप्रोत बना रहा. तभी तो मनमोहक संगीत में आत्मा संगत करती हुई बादल के बच्चों का पीछा तब तक करती है जब तक कि आकृति बिगड़ने न लगे.

बचपन की तरह खिलंदड स्वभाव लेकर कोई कोंपल गुमसुम रह ही नहीं सकती है, ये डॉ० अनिता ने अपने संग्रह में स्पष्ट रूप से समझाया है.
कहाँ हो जलधार... मेरी प्यास के
तेरे बिन... ये मन विकल
भले ही हो रहा हो मगर आगे ही पल
विहग का कलरव
तेरे
उदगार स्नेहिल
कोमल कान्त
पदावली सरीखे
गुनगुनाये मन
के द्वारा मन खुद में प्रसन्नचित्त होने का एहसास करता है. गुनगुनता मन अपने आपमें ही नहीं गुनगुना रहा है बल्कि प्रेम के सहज आकर्षण को महसूस भी कर रहा है. इसी सहज आकर्षण की डोर में बंधी कलम अनमनी होने के बाद भी मिलन की चाह रखती है.
आमंत्रण... स्नेह भरा
विवश करता...
झकझोरता... हृतन्त्रिकाएं
जागरण से... सुषुप्ति तक
अहर्निश...
जपता..... अजपा जाप
अनमना मन
जैसी गंभीर भाव-वेदना के द्वारा मिलन की चाह को भी कलम इंगित करती है और उसके कारण को भी क्योंकि
आखिर सध न पाता... ध्यान...
न हो पूरी.... समाधि
मिलन की है चाह... उत्कट
कब मिलोगे?
प्राण मेरे...

डॉ० अनिता की कलम गुमसुम कोंपलों की अंतर्वेदना को ही नहीं लिखती हैं वरन वे ओस के मोती भी सजा लाती हैं. यह अपने आपमें ही सहृदयता का सूचक होता है जो गुमसुम कोपलों को ओस के मोती के द्वारा सजाने का भाव प्रदर्शित किया जाता है. मुक्त रचनाओं से आगे की यात्रा जैसे-जैसे गीत-ग़ज़ल के द्वारा बढ़ती रहती है, पाठक मन को संतुष्टि का बोध होता जाता है.
रिश्तों को
पकने दो
हल्की-सी
आँच पर
अधपके रिश्ते
टूटते हैं ऐसे
कंकड़ ज्यूँ
कांच पर
का सहज भावबोध काव्य-रचनाओं की गहराई को बताने को पर्याप्त है. संबंधों को समझने की भावप्रवणता है तो भावपरक वेदना की अनुभूति भी है. लेखिका सहजता के साथ प्रकृति के साथ तादाम्य स्थपित करते हुए विरह की वेदना का सहज चित्र उकेर देती है. तभी तो ऐसा एहसास होता है जैसे कलम स्याही की जगह आँसुओं के द्वारा रचना निर्माण में प्रवृत्त है-
आज फिर रोएगी रात
आसमां धोएगी रात
वेदना के बोझ को
कब तलाक ढोएगी रात
अपने सिंचित कोष को
आज फिर खोएगी रात.

प्रेम मिलन की चाह का मुक्त स्वरूप और उसके बाद वेदना की आलंबनयुक्त रचना लेखिका की गंभीरता का परिचायक है. पहला काव्य संग्रह होने के बाद भी रचनाओं की गंभीरता, उनका सहज भावबोध, वैचारिकी का उत्कृष्ट विन्यास, मनोभावों का स्वाभाविक आलम्बन अनुप्राणित ह्रदय की अभिव्यक्ति चाहता है.
काट लें क्या, यूँ ही रात हम
याकि खुलकर, करें बात हम
का अनुरोध भी है तो
क्यों हैं ये आँखें नम, समझ लेते
कुछ तो हालत-ए-ग़म समझ लेते
जैसी बेबसी भी है. अनुरोध, निवेदन, बेबसी, वेदना, विरह जैसे विषयों पर शब्द-शब्द स्वयं कुछ कहता सा प्रतीत होता है जो पाठकों को अकेला नहीं रहने देता है. डॉ० अनिता की रचनाएँ और उनका विन्यास एक-एक पंक्ति के साथ पाठकों को उसके खुद के साथ जोड़ने में सफल रहता है. ऐसी ही मनोदशा के साथ मन-मयूर
काश कि इन सूनी राहों पर
थोड़ी देर... ठहर जाते.
सांझ ढले कुछ वादे करते
चाहे भोर... मुकर जाते
का ख्वाब भी रचता है किन्तु कसक बाकी है अभी और इसी कसक में
बूँदें छिपी दिखी हैं घन में
आशा एक जगी है मन में
सरसा दे प्यासी धरती को
यौवन आ जाए जीवन में.
की आस जगी हुई है, साथ ही  
मुस्कुरा कर पत्तियाँ, झिड़कती हैं ओस को
लौट आया है मुसाफिर, बड़ा मेहरबान निकला
जैसा सुखद एहसास भी छिपा मिलता है. इस सुखद एहसास के बाद भी कलम पीड़ा का गान करती है. इस पीड़ा में प्रेम की अभिव्यक्ति तो है ही उसके पार्श्व में संवेदना का भाव है. इस संवेदना में प्रेम द्वारा छले जाने का भाव है, खुद को अनचीने जाने का बिम्ब भी है.
मेरी कीमत को तो उसने
आँका कौड़ी मोल सदा
मेरी जेब देखकर खाली
अपना ऊँचा दाम लिखा.

निश्चित ही विरासत को अनिता जी संजोती ही नहीं वरन संवारती भी दिखती हैं. इस विरासत को संजोये रखने का भाव उनकी रचनाएँ स्वयं ही रखती हैं. प्रेम में सराबोर रचनाओं में करुणा है मगर उनमें क्रंदन नहीं है. प्रेम की अभिव्यक्ति है मगर उसमें वासना नहीं है. विरह वेदना की अभिव्यक्ति है मगर उसमें निराशा नहीं है. मिलन की आस है, मन का दर्शन है, जज्बातों का गाम्भीर्य है, एहसासों का बिम्ब विधान है, भावनाओं की उत्तुंग शिखर है, अपनेपन की कोमलकांत व्यंजना है. इस तरह का आलंकारिक वैविध्य बहुत कम देखने को मिलता है जबकि प्रेम में विरह का चित्रण हो रहा हो और उसमें भावनाओं की गंभीरता कम न होने पाए. अनिता जी ऐसा कर पाने में इसलिए भी सफल हुई हैं क्योंकि उनकी रचनाओं में जानबूझकर बनाया गया आलंकारिक भाव नहीं है. रचनाओं को साहित्यिकता का पुट देने की इच्छा से जबरन ओढ़ाया गया भाव-बोध नहीं है. उनकी रचनाएँ चाहे वे मुक्त छंद रहे हों या फिर गीत-ग़ज़ल एकसमान रूप से सरल, सहज, अपने से लगने वाले शब्दों के साथ स्वतः प्रवाहमान होते रहते हैं. पाठक रचनाओं को सिर्फ पढ़ता ही नहीं वरन उसको महसूस करता हुआ उनके साथ आगे बढ़ता जाता है.

यह सिर्फ संयोग नहीं वरन उसी सांस्कृतिक विरासत का सुखद परिणाम है, जिसकी चर्चा वे स्वयं करती हैं. गीत-ग़ज़ल-मुक्तक पर समान रूप से अधिकार रखने की कला उनके श्रम का ही नहीं वरन उस सांस्कृतिक विरासत के हस्तांतरण का भी प्रतिफल है जिसे अनिता जी ने कलम और भावनाओं के सहारे एकाकार बनाया हुआ है. उनकी कही-अनकही के आगे का संसार माँ के आँचल में पल्लवित होता है, जहाँ एहसास है, ज़िन्दगी है, कामना है. उनका अनमना-मन शरद में गाँव की यात्रा करता है तो चाँद को आवेदन करता है कि उतर आ धरती पर आज करेंगे बात

उनके पहले काव्य-संग्रह की साहित्यिक गरिमा, संवेदना देखकर निश्चित ही विश्वास किया जा सकता है कि भविष्य में और भी उत्कृष्ट रचना-संसार से परिचित होने का अवसर पाठकों को मिलेगा.
सूरज के आगमन का, बताएगा चाँद क्या
दिन कब उगेगा, भोर के तारे से देखिये
के सहज भाव से अनिता सिंह की भावी यात्रा को समझा जा सकता है, आखिर कसक... बाकी है अभी.

समीक्षक : डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
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कृति : कसक... बाकी है अभी (कविता संग्रह)
लेखिका : डॉ० अनिता सिंह
प्रकाशक : हिन्दुस्तानी भाषा अकादमी, नई दिल्ली
संस्करण : प्रथम, 2017
ISBN : 978-81-932721-4-5

4 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 17 मई 2018 को प्रकाशनार्थ 1035 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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  2. उत्कृष्ट समीक्षा.... लेखिका एवम्स मीक्षक को हार्दिक बधाई एवं अनंत शुभकामनाएँ!

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