बुधवार, 9 फ़रवरी 2022

सामाजिक विसंगति के बीच मर्यादा का प्रेम बसंत है फरवरी नोट्स

फरवरी नोट्स, शीर्षक देख कर ही कुछ अलग सा एहसास हुआ. पुस्तक पढ़ने के पहले यह एहसास कतई नहीं था कि यह किसी विवाहेतर प्रेमगाथा को अपने में समेटे होगी किन्तु इसका भान अवश्य हो रहा था कि इसमें जो कुछ भी है वह फरवरी माह की तरह गुलाबी अवश्य है. पूरब की कह लें या फिर पश्चिम की, सभी संस्कृतियों में फरवरी माह प्रेम का, प्यार का, बसंत का महीना सहज रूप में स्वीकारा गया है. प्रेम से जुड़ा यह महीना भी प्रेम की तरह कम ही है शेष महीनों से. प्रेम की तरह से कम इस रूप में कि यदि किसी को प्यार मिल भी जाये तो उसे कम लगता है और यदि किसी कारण से प्रेम की प्राप्ति नहीं होती तो वह अपने अधूरेपन के कारण भी कम रह जाता है.


प्रेम की स्थिति बड़ी विचित्र होती है. प्रेम होकर भी वह प्रेम जैसा नहीं होता और कहीं कुछ न होकर भी प्रेम से सराबोर प्रेम होता है. फरवरी नोट्स को किसी तरह से अलग तरह की प्रेम कहानी के रूप में नहीं देखा जा सकता है. इसमें यदि प्रेम का विषय उठाया गया है तो समाज की उस विसंगति की तरफ लेखक, डॉ. पवन विजय ने ध्यान आकृष्ट करवाया है जो इन दिनों आम है. समाज की वास्तविक दुनिया हो या फिर टीवी, फिल्मों की काल्पनिकता, सभी जगह विवाहेतर संबंधों का खुलकर चित्रण किया जा रहा है. साहित्य भी समाज का एक अंग है और उसमें भी वह सब घटित होता है जो समाज का हिस्सा है. यह हिस्सा गलत है या सही, इसका निर्धारण सबकी दृष्टि में अलग-अलग रूप में हो सकता है. फरवरी नोट्स की प्रेम कहानी संस्कारों का विध्वंस करती है, पूर्व-धारणाओं को तोड़ती है पर उसमें किसी तरह की हिंसा नहीं है. संबंधों में, रिश्तों में एक तरह का ध्वंस दिखाई देता है, विश्वास में एक तरह की दरकन दिखाई देती है मगर उसमें क्रूरता नहीं है. देह के प्रति आकर्षण है, प्रेम की उदात्त भावना का प्रदर्शन भी होता दिखता है मगर उसके द्वारा किसी का जीवन समाप्त नहीं किया जाता है. इस कहानी में तमाम सारी वर्जनाओं का अंत होता दिखता है मगर उसके द्वारा अशालीनता का निर्माण नहीं किया जाता है.


उपन्यास के चार मुख्य पात्र समर, आरती, रश्मि और प्रकाश हैं. कॉलेज के दिनों का संकोच भरा प्यार कालांतर में उम्र की परिपक्वता के बाद भी अपनी मासूमियत को खो नहीं पाता है. ऐसे में बरसों बाद आरती कॉलेज समय के अपने प्यार समर को सोशल मीडिया मंच पर खोज ही लेती है. कॉलेज के समय में किया गया सवाल मे आई फ्रेंडशिप विद यू को दोहराने के बाद अबकी समर भले ही उसका जवाब न दे पाता हो मगर दिल की भावना को भी छिपा नहीं पाता है. समर आरती के प्रस्ताव को मना नही कर पाता किन्तु एक तरह की जद्दोजहद में वह फँस जाता है. प्रेम को लेकर समर का द्वंद्व उसके व्यक्तित्व में इस तरह हावी रहता है कि उसके व्यवहार में भी एक तरह की अनिश्चतता दिखती रहती है.  


प्रेम के इस स्वरूप के दर्शन आये दिन समाज में होते रहते हैं, फिर भी सामाजिक रूप से यह स्थिति अभी स्वीकार्य नहीं हो सकी है. देखा जाये तो समाज के बहुत से हिस्सों में लिव इन रिलेशन को किसी न किसी रूप में मान्यता दे दी गई है, उसकी स्वीकार्यता को लेकर अब उतनी अनिश्चितता नहीं रह गई है मगर विवाहेतर संबंधों को लेकर अभी किसी तरह की सहमति जैसी स्थिति नहीं दिखती है. उपन्यास में विवाहेतर प्रेम की विसंगतियों को उठाया गया है किन्तु उसके द्वारा किसी एक ठोस निष्कर्ष को, समाधान को न तो पात्रों द्वारा और न ही लेखक द्वारा सामने नहीं रखा गया है. सुखांत देखने-सुनने के अभ्यस्त भारतीय समाज की नब्ज को जानते-समझते हुए लेखक ने अपने-अपने परिवार को छोड़कर चले आये समर और आरती को भटकाव में जाने से अवश्य ही रोका है. परिवार की महत्ता को समझते हुए दोनों अपने-अपने परिवार में वापस जाने की मनोदशा बना लेते हैं.  


उपन्यास के अन्त में आरती और समर का मूलभाव आदर्शात्मक व्यवस्था को बनाये रखने का रहा है. इसी कारण दोनों एक-दूसरे की भावनाओं का सम्मान करते हुए, अपने को क्रूर और स्वार्थी न मानते-समझते हुए  अपने-अपने परिवार में वापस लौटने का निर्णय कर लेते हैं. देखा जाये तो समर और आरती में पल्लवित प्रेम के पीछे तरुणाई का प्रेमांकुर था. वह प्रेम का अंकुर परिवार के स्वस्थ, समग्र विकासमान होने के बाद भी एक-दूसरे के प्रति क्यों उत्कंठित हो उठा, इसे स्पष्ट रूप से दर्शाया नहीं गया है. उनके प्रेम के उपजने ने कालांतर में परिवार को बिखंडित किया. इसके बाद भी उन दोनों में अपने-अपने जीवनसाथियों से न तो घृणा न थी, और न ही उनके प्रति हिंसक भाव था. परिवार के प्रति दायित्व-भाव ने और आपसी प्रेम में मर्यादित भाव ने उन दोनों को मर्यादाविहीन न होने दिया. कहते हैं कि सुबह का भूला शाम को वापस आ जाये तो उसे भूला नहीं कहते, कुछ इसी तरह से अंत में उन दोनों ने वही किया जो समाज की मर्यादा के अनुकूल था. वे अपने बच्चों के साथ, अपने जीवनसाथियों के पास वापस लौटने को तैयार हो जाते हैं.  


उपन्यास का सर्वाधिक दिलचस्प हिस्सा वे चिट्ठियाँ हैं जो समर और आरती के मध्य लिखी जाती हैं. वर्तमान इन्टरनेट के, सोशल मीडिया के दौर में चिट्ठियों के माध्यम से बातचीत करना फरवरी नोट्स को विशेष बनाता है. देखा जाये तो इन पत्रों के माध्यम से लेखक को भरपूर अवकाश मिला है अपना जीवन-दर्शन व्यक्त करने का, अपने भाषाई लालित्य को प्रदर्शित करने का. यही कारण है कि समर और आरती के प्रेमपत्रों को पढ़कर बहुत बार ऐसा लगता है कि हम प्रेम-पत्र नहीं बल्कि दार्शनिक सौन्दर्य का आनंद उठा रहे हैं. चूँकि लेखक स्वयं में सामाजिक विज्ञानी हैं और भाषाई कलात्मकता बिखेरने के हुनर से परिपूर्ण हैं, ऐसे में उपन्यास के दो प्रेमियों की चिट्ठियों में भाषा-सौन्दर्य, लालित्य भाव बोध, अलंकारिकता का वैशिष्टय देखने को मिलता है.


सामाजिक जीवन के तमाम पक्षों को समेटे, ध्वंस और निर्माण का रास्ता बनाते हुए, सामाजिकता और असामाजिकता की महीन सी रेखा खींचते हुए, प्रेम के साथ करुणा को पोषित करते हुए विवेच्य उपन्यास दुखांत की तरफ जाता तो है किन्तु आदर्श, मर्यादा, संस्कार आदि के चलते वह सुखांत, सुखद राह पकड़ लेता है. यह अंत ही एक तरह से विवाहेतर सामाजिक विसंगति का समाधान है, भले ही यह पूर्ण और अंतिम समाधान न हो मगर समाधान की राह अवश्य बनाता है.


समीक्षक : डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर
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कृति : फरवरी नोट्स (उपन्यास)
लेखक : डॉ. पवन विजय
प्रकाशक : हर्फ़ पब्लिकेशन, नयी दिल्ली
संस्करण : प्रथम, 2020
ISBN : 978-93-87757-43-1

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