शनिवार, 12 फ़रवरी 2022

संवेदना, विश्वास और सशक्तिकरण की त्रिवेणी

तुम्हारी लंगी, शीर्षक देखते ही एक पल को दिमाग में जो चित्र उपजा था, वह चित्र इसी नाम की कहानी में देखने को मिला. शीर्षक देखकर उत्सुकतावश सबसे पहले इसी नाम से प्रकाशित कहानी को पढ़ा. कहानी को पढ़ते-पढ़ते दिमाग कहीं और ही घूमने लगता है. ऐसा लगता है जैसे कहानी कहीं हमारे आसपास ही चल रही है. ऐसा अनुभव होता है जैसे कहानी कहीं देखी हुई है. एक लड़की की कहानी, जिसका संसार चहारदीवारी तक सीमित रहा, कालांतर में उपजे स्नेहिल अंकुर में उसकी सीमा-रेखा अनंत को छूने लगती है. आमतौर पर इस विषय में जिस तरह का अंत दिखता है या कहें कि एक बंधी-बँधाई लीक पर कहानी चलते हुए पत्रों को और पाठकों को सुख का अनुभव कराती है, उससे कुछ अलग चलते हुए एक नया मानक स्थापित करती है.


कंचन सिंह चौहान की एक यही कहानी नहीं बल्कि सभी कहानियाँ अपनी कहानी के साथ-साथ समाज की स्त्री की कहानी कहती हैं. कुल नौ कहानियों को अपने में समेटे संग्रह केवल कहानियों की बात नहीं करता है बल्कि महिलाओं के संवेदित समाज की कहानी कहता है तो बहुत धीरे से उस पुरुष वर्ग की कहानी को भी सामने लाता है, जिसका मनोद्देश्य समाज पर, महिलाओं पर आधिपत्य स्थापित करना है. इस कहानी संग्रह में उन महिलाओं का संसार छिपा हुआ है जो एक तरफ समाज की अनेकानेक बुराइयों से लड़ती हुई आगे बढ़ने का प्रयास करती हैं, उसमें सफल होती हैं साथ ही वे महिलाएँ भी हैं जो इसके साथ-साथ अपनी शारीरिक परेशानियों पर भी विजय प्राप्त करती हैं.


इन कहानियों में महिलाओं के अपने परिवार से लड़ने की कहानी है, समाज से लड़ते हुए अपना मुकाम बनाने की कहानी है, खुद को स्थापित करने की कहानी है, महिलाओं के द्वारा स्वजनों को प्रोत्साहित करने की कहानी है, अपने परिजनों-मित्रों के संघर्षों में उनके साथ खड़े रहने की कहानी है. ऐसा करने के पीछे महिलाओं का खुद को स्थापित करने का, अपने व्यक्तित्व को सबसे ऊपर दिखाने का नहीं बल्कि अपने साथ के लोगों को आगे बढ़ाने का उद्देश्य है. इनके पीछे संवेदना है, सहानुभूति है, प्रेम है, सद्भावना है.


कंचन जी के इस संग्रह की विशेषता जो व्यक्तिगत तौर पर हमें समझ आई वो ये कि एक ही संग्रह की सभी कहानियाँ एक साथ दो मुद्दों पर खुलकर अपनी बात रखती हैं. इन कहानियों के द्वारा एक तरफ साहित्य में पिछले कई दशकों से छाये स्त्री-विमर्श, स्त्री-सशक्तिकरण की सुगंध की अनुभूति होती है तो दूसरी तरफ इन्हीं कहानियों में समाज के उस वर्ग की आवाज़ प्रस्फुटित हुई है जिसे समाज सिर्फ और सिर्फ सहानुभूति की नजर से देखता है. शारीरिक रूप से अक्षम या कमजोर न कहकर इन्हें शारीरिक रूप से अलग व्यक्तित्व कहा-समझा जा सकता है.


विकलांग शब्द को भले ही सरकार द्वारा दिव्यांग में परिवर्तित कर दिया गया हो मगर अभी समाज की मानसिकता में परिवर्तन नहीं आया है. इस मानसिकता में परिवर्तन का प्रयास तुम्हारी लंगी करना चाहती है. स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि स्त्री-सशक्तिकरण और दिव्यांग-सशक्तिकरण की धारा एकसाथ, एकरूप में तुम्हारी लंगी दिखाती है. हमारे व्यक्तिगत विचार में ये संग्रह सभी को पढ़ने की आवश्यकता है, विशेष रूप से उनको जो महिलाओं को, दिव्यांगजनों को आज भी तमाम सशक्त उदाहरणों के बाद भी समाज का कमजोर हिस्सा मानते हैं.

 

समीक्षक : डॉ० कुमारेन्द्र सिंह सेंगर

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कृति : तुम्हारी लंगी (कहानी संग्रह)

लेखिका : कंचन सिंह चौहान

प्रकाशक : राजपाल एंड संस, दिल्ली

संस्करण : प्रथम, 2020

ISBN : 9789389373332

 

 


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